गुड़गांव। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरी हरित क्रांति के सपने को मुख्यमंत्री मनोहर लाल झटका दे रहे हैं। खेतों की उर्वरकता बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने 19 फरवरी को राजस्थान से ‘राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ की शुरुआत की थी, लेकिन उनकी पार्टी की ही मनोहर सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं दिख रही है। हरित क्रांति वाले इस प्रदेश में अब तक मृदा परीक्षण का काम कागजों तक सीमित है।
राष्ट्रीय स्तर पर इस अभियान की शुरुआत होने के बाद हरियाणा सरकार ने फसल की बुआई से पहले खेतों की ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ बनाना अनिवार्य किया था, लेकिन कर्मचारियों की कमी प्रधानमंत्री की दूसरी हरित क्रांति की राह में रोड़ा बनी हुई है। कृषि विभाग के 24 कृषि सहायक अधिकारी (एडीओ) खेतों के मिट्टी के नमूने ले रहे हैं, लेकिन उनका परीक्षण करने वाला कोई नहीं है। कृषि विभाग के मृदा परीक्षण विभाग के सभी पद खाली हैं। जिससे मिट्टी के सैंपल ‘मिट्टी’ में मिल रहे हैं। बिना अधिकारी और कर्मचारी के किसानों को मिट्टी में मौजूद तत्व और उसकी उर्वरक क्षमता के बारे में जानना भी बेमानी है।
क्यों किया गया यह जरूरी
हरित क्रांति में पंजाब और हरियाणा के रुतबा को देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय की नजर सबसे ज्यादा इन दोनों प्रदेशों पर है। बीते सालों में रसायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग होने की वजह से मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हुई है। जिसका असर खेतों की उत्पादक क्षमता पर हो रहा है। हर 25 एकड़ पर चार नमूना लेना है। अंधाधुंध हो रहे रसायनिक खाद के प्रयोग पर विराम लगाते हुए जितनी जरूरत हो, उतनी खाद खेतों में दी जाए।
जिला मृदा परीक्षण केंद्र शहर के बीचोंबीच स्थित है। जिसकी वजह से दूर से आने वाले किसानों को दिक्कत होती है। विभाग के पास मोबाइल स्वाइल टेस्टिंग लैब नहीं है। जिसकी वजह से दूर कहीं जाकर कैंप लगाना मुश्किल है। जिला मृदा परीक्षण विभाग के पास परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (एएएस) मशीन है। हरियाणा कृषि यूनिवर्सिटी के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एमपी श्रीवास्तव कहते हैं इस तकनीक से परीक्षण के लिए लगने वाली फिल्टर ही महंगी है। हर दिन मिट्टी के दो दर्जन से अधिक परीक्षण करने में असफल हैं। जबकि अधिक नमूनेेऔर अच्छे विश्लेशण के लिए इंडक्टीव कपल प्लाज्मा स्पेक्ट्रोमीटर जरूरी है। जिसमें एक साथ ऑटोमैटिक 250 सैंपल एक बार में विश्लेषण किये जा सकते हैं।
क्या है अभी स्थिति
हरियाणा के खेतों में जिंक 24 फीसदी, आयरन 31 फीसदी और मैगभनीज 5.20 फीसदी कम है। गुड़गांव और मेवात के इलाके में नाइट्रोजन और फासफोरस बहुत ही कम है। कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोजेक्ट निदेशक डॉ. आरएस बल्यान कहते हैं कि नाइट्रोजन के अभाव में फसलों को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। जिससे पौधों के मरने का डर बना रहता है। इस वजह से इन इलाकों में सूखा का असर जल्दी होता है।
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विभाग के पास कर्मचारियों की कमी के बारे में कृषि निदेशालय को लिखा गया है। मिट्टी के नमूने लेने के बाद इसकी जांच के लिए निदेशालय को लिखा जाएगा। वहां से दिशा-निर्देश के बाद कुछ इंतजाम किए जाएंगे।
-पीएस सभरवाल, कृषि उपनिदेशक
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